दिल्ली : दिल्ली में बीजेपी ने न केवल अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी बल्कि जानबूझकर मक्खी निगली. उसकी सबसे बड़ी गलती यह थी कि उसने युवा आक्रोश की अनदेखी की और यह नहीं देखा कि दुनिया के किसी भी देश में बदलाव लाने में युवाओं की भूमिका ही प्रमुख रही है. जामिया मिलिया व जेएनयू में की गई छात्रों की पिटाई, युवाओं की आवाज को दबाने की नीति, असहमति जताने वालों को टुकड़े-टुकड़े गैंग व देशद्रोही बताना बीजेपी के शीर्ष नेताओं के लिए आत्मघाती रहा. बढ़ती बेरोजगारी और केंद्र सरकार की दमन नीति को लेकर युवाओं का गुस्सा उबल रहा था लेकिन बीजेपी ने तय कर लिया कि वह इस ओर कोई ध्यान न देकर राष्ट्रवाद, सीएए व एनआरसी जैसे मुद्दों का शोर मचाकर माहौल अपने पक्ष में कर देगी. बीजेपी की असहिष्णुता, युवाओं की ज्वलंत समस्याओं का हल निकालने की बजाय उन पर दमन चक्र चलाना ऐसे कदम थे जिनकी वजह से उसकी दिल्ली में बुरी तरह पराजय होनी ही थी. महिलाओं को महंगाई सबसे ज्यादा तकलीफ देती है क्योंकि उन्हें घर-गृहस्थी चलानी पड़ती है. अन्य पहलुओं के अलावा प्याज के दाम बेतहाशा बढ़ जाने से भी गृहणियों तथा सामान्य जनता को भारी परेशानी उठानी पड़ी. इन सबका असर चुनाव पर पड़ना ही था. दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की शानदार जीत ने दिखा दिया कि अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता में कहीं कोई कमी नहीं आई है. बीजेपी ने अथक प्रयास किए लेकिन केजरीवाल के किले को भेद नहीं पाई. महाराष्ट्र में सत्ता गंवाने के अलावा राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व झारखंड में सत्ता से बेदखल हो चुकी बीजेपी को दिल्ली में भी मुंह की खानी पड़ी. दिल्ली के चुनाव में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पूरी ताकत झोंक दी थी. उन्होंने रैलियों, रोड शो के अलावा घर-घर जाकर वोट मांगे. ऐसा लगने लगा था मानो अमित शाह ही चुनाव लड़ रहे हों. बीजेपी ने इस चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था और किसी भी कीमत पर जीतना चाहती थी. दबाव, धमकी व दहशत का माहौल भी बनाया गया, इसके बावजूद बीजेपी के अरमानों पर पानी फिर गया. दिल्लीवासियों ने बदलाव का वोट नहीं दिया बल्कि ‘आप’ के प्रति अपने विश्वास को कायम रखा. बीजेपी ने स्थानीय मुद्दों की बजाय अनावश्यक रूप से राष्ट्रीय मुद्दों पर जोर दिया. पार्टी ने इस चुनाव को सीएए और राष्ट्रवाद के पक्ष में जनमत संग्रह बताकर हिंदुत्व के मुद्दे पर जोर दिया.
युवा आक्रोश, सीएए व एनआरसी का नतीजा